Makar Sankranti 2025 : मकर संक्रांति पर क्यों है तिल गुड़ और गंगा स्नान का महत्व, जानिए इस पर्व से जुड़ी धार्मिक कथाएं

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By faizalam000057@gmail.com

Makar Sankranti 2025 : आज देशभर में मकर संक्रांति का पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है। मकर संक्रांति हिंदू धर्म का महत्वपूर्ण पर्व है, जो सूर्य देव के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। इस दिन से सूर्य उत्तरायण होते हैं, जिसके बाद रातें छोटी और दिन बड़े होने लगते हैं।

आज का दिन भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक आस्थाओं का प्रतीक होता है। मकर संक्रांति का महत्व धार्मिक, आध्यात्मिक, और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अत्यधिक है। मकर संक्रांति भारत में एक कृषि पर्व के रूप में भी मनाया जाता है। यह दिन खेतों में नई फसल की कटाई का समय होता है। पंजाब में यह ‘लोहड़ी’, महाराष्ट्र में ‘माघी’, उत्तर भारत में ‘खिचड़ी’ और तमिलनाडु में ‘पोंगल’ के रूप में मनाया जाता है।

 

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श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाई जा रही है मकर संक्रांति 

मकर संक्रांति को विशेष रूप से सूर्य पूजा और तिल के दान के लिए जाना जाता है। इस दिन लोग तिल और गुड़ का सेवन करते हैं क्योंकि ये दोनों आयु और समृद्धि को बढ़ाने वाले माने जाते हैं। इसके अलावा, मकर संक्रांति के दिन गंगा सहित अन्य पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है। मकर संक्रांति से जुड़ी कई धार्मिक, आध्यात्मिक और पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं, जो इस पर्व के महत्व को दर्शाती हैं।

 

इस पर्व से जुड़ी धार्मिक और पौराणिक कथाएं

1. सूर्य देव और शनि देव की कथा : पौराणिक कथाओं के अनुसार, शनिदेव सूर्यदेव के पुत्र हैं लेकिन प्रारंभ में दोनों के बीच तनावपूर्ण संबंध थे। शनि देव का रंग गहरा होने के कारण सूर्य देव ने उन्हें त्याग दिया और कहा कि ऐसा पुत्र उनका नहीं हो सकता। इसके बाद शनि देव और उनकी माता छाया को अलग कर दिया गया, और शनि को “कुंभ” नामक घर में भेजा गया। इस अपमान से क्रोधित होकर छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का श्राप दिया, और बदले में सूर्य देव ने शनि देव का घर जला दिया। सूर्य देव के पुत्र यम ने उन्हें इस श्राप से मुक्ति दिलाई और सलाह दी कि वे अच्छा व्यवहार करें। सूर्य देव ने शनि से मिलने के बाद उन्हें काले तिल से सम्मानित किया। प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को नया घर “मकर” दिया, और मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव को काले तिल अर्पित करने से सुख और समृद्धि की प्राप्ति का वचन दिया। यही कारण है कि मकर संक्रांति पर काले तिल का विशेष महत्व होता है।

2. राजा भगीरथ और गंगा की कथा : राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए गंगा नदी को धरती पर लाया था। गंगा नदी इतनी शक्तिशाली थी कि धरती को नष्ट कर सकती थी। इसलिए भगवान शिव ने गंगा नदी को अपने जटाओं में बांध लिया। बाद में भगीरथ के अनुरोध पर भगवान शिव ने गंगा नदी को धरती पर छोड़ दिया। कहा जाता है कि गंगा नदी मकर संक्रांति के दिन ही धरती पर आई थी, और इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन गंगा में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसी कारण मकर संक्रांति के दिन गंगा स्नान को अत्यधिक पुण्यदायक माना जाता है।

3. भगवान विष्णु का वामन अवतार : एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने असुर राजा बलि को मकर संक्रांति के दिन पाताल लोक भेजा था। राजा बलि बहुत ही शक्तिशाली और दानी राजा थे, जिन्होंने देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर अधिकार कर लिया था। इस पर भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया और राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांग ली। राजा बलि ने अपनी शरण में आने वाले वामन भगवान से तीन पग भूमि देने का वचन दिया। भगवान विष्णु ने अपनी तीसरी पग में स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोकों को नाप लिया। इस प्रकार, भगवान विष्णु ने राजा बलि को स्वर्ग से पाताल लोक भेज दिया, लेकिन साथ ही यह भी कहा कि वह हर वर्ष मकर संक्रांति के दिन पाताल लोक से ऊपर आकर अपनी प्रजा से मिल सकते हैं। इसी कारण मकर संक्रांति के दिन राजा बलि का स्वागत करने की परंपरा है, खासकर महाराष्ट्र और दक्षिण भारत में, जहां लोग इस दिन उनके स्वागत के लिए विशेष पूजा और उत्सव मनाते हैं।

4. सूर्य देव का रथ : किवदंती के अनुसार, सूर्य देव का रथ सात घोड़ों द्वारा खींचा जाता है। खरमास के दौरान सूर्य देव के रथ में खर जुड़े रहते हैं जिसके कारण सूर्य देव की गति धीमी हो जाती है। मकर संक्रांति के दिन खर दूर हो जाते हैं और सातों घोड़े रथ को खींचने लगते हैं जिससे सूर्य देव की गति बढ़ जाती है। इस कथा के अनुसार मकर संक्रांति के दिन से सूर्य देव की गति बढ़ने लगती है और दिन लंबे होने लगते हैं।

5. यशोदा और श्रीकृष्ण की कथा : कहा जाता है कि माता यशोदा ने अपने पुत्र श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिए मकर संक्रांति का व्रत रखा था। उन्होंने भगवान कृष्ण की भक्ति में इस व्रत को रखा और संकल्प लिया कि वह इस दिन विशेष रूप से पूजा-अर्चना करेंगी। यह व्रत माता यशोदा की पूरी श्रद्धा और समर्पण का प्रतीक था, जिससे वह अपने पुत्र श्रीकृष्ण के साथ अपने रिश्ते को और भी प्रगाढ़ करना चाहती थीं। मान्यता है कि मकर संक्रांति का व्रत रखने से व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी होती हैं, और विशेष रूप से इस दिन की पूजा से जीवन में सुख, समृद्धि और समर्पण की प्राप्ति होती है।

6. संतान प्राप्ति के लिए व्रत कथा : मकर संक्रांति से जुड़ी एक और लोकप्रिय कथा है जो संतान प्राप्ति से संबंधित है। एक समय की बात है, एक स्त्री संतान की कामना के लिए मकर संक्रांति के दिन विशेष व्रत करती है। इस व्रत को करने से उसे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और उसकी मनोकामना पूरी होती है। इसके बाद से यह परंपरा बन गई कि इस दिन विशेष रूप से व्रत रखना और तिल का दान करना संतान सुख की प्राप्ति का उपाय है।

7. कुंभ मेला और मकर संक्रांति : इस समय प्रयागराज में महाकुंभ चल रहा है। कुंभ मेला के संबंध में भी एक मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन भगवान सूर्य और गंगा का संगम होता है। यही कारण है कि कुंभ मेला मकर संक्रांति के दिन से शुरू होता है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में स्नान करते हैं और पुण्य अर्जित करते हैं। यह दिन आध्यात्मिक उन्नति के लिए विशेष महत्व रखता है।

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